Publish Date: January 12 2018 08:18:52pm
बीकानेर (उत्तम हिन्दू न्यूज): कानूनविद हुमा असद ने कहा है कि थोपा हुआ तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं की पलभर में जिंदगी बदल देता है। हुमा ने आज यहां अधिवक्ता परिषद बीकानेर द्वारा न्यायालय परिसर में आयोजित मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम 2017 (तीन तलाक) विषय पर आयोजित परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं की स्थिति कुछ पलों में बदतर कर देता है जबकि कुरान में तीन तलाक का कहीं जिक्र नहीं है, मोहम्मद साहब ने भी इसे गलत माना था। उन्होंने शूरा और हदीस का हवाला देते हुए कहा कि कुरान के अध्याय दो की आयत संख्या 228 से 240 में तलाक का वर्णन किया गया है, लेकिन इसमें तीन तलाक का जिक्र नहीं है। हुमा ने बताया कि शूरा के अनुसार अध्याय चार आयत संख्या 35 में कहा गया है कि यदि पति पत्नी में किसी प्रकार का विवाद होता है तो उसे तीन माह की समयावधि में मध्यस्थ के माध्यम से निपटाना चाहिये और दोनों सहमत हो जायें तो निकाह बरकरार रहेगा। इसमें हलाला की आवश्यकता नही है। यह तलाक ए हसन है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अनवर सैयद ने कहा कि मुस्लिम विधि के तीन भाग हैं। पहला कुरान यानि अल्ला की वाणी दूसरा हदीस यानि मुहम्मद साहब द्वारा बनाये गये जिन्दगी के नियम है और तीसरा सुन्नत जो उन्होंने जीवन के व्यवहार में अनुभव किया। उन्होंने कहा कि इन सभी में तलाक नही है। इस प्रकार जो तलाक चलाया जा रहा वह समाज की कुरीति है। मुस्लिम समाज दीनी और दुनियावी तालिमों से दूर है, लिहाजा समाज में यह एक बुराई पनप गई है। परिचर्चा में वरिष्ठ अधिवक्ता मुमताज भाटी ने कहा कि मुस्लिम समाज इन दोनों तालिमों से दूर है, इसलिए समाज की डोर चन्द हाथों में चली गई है जो इन्सानियत को नहीं समझते हैं। संविधान में बराबरी का अधिकार है। एक ओर तो वे कहते हैं कि मुस्लिमों में निकाह संविदा है, फिर उस संविदा को एक तरफा तोडऩे का अधिकार एक ही पक्ष को क्यों दिया जा रहा है। मुस्लिम समाज को बनाये रखने के लिए इस प्रकार के बिल की आवश्यकता है।
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